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पिता का समर्पण


कभी जो शांत होके
मन का दर्पण देखा
माँ का त्याग और
पिता का समर्पण देखा।

वो मरके भी कभी औलाद
से जुदा न हुआ
यहां माँ बाप से बढ़के
कोई खुदा न हुआ।

खुशी परिवार को और
खुद को गम देता है
पसीना बेच कर
बच्चों को कलम देता है।

जहां में पिता से 
अमीर कौन रहता है।
वो फटेहाल भी बच्चे
से यही कहता है।
ले ले बच्चे मेरे तू
जो भी तेरा दिल चाहे
तू फिक्र मत करना
बाप तेरा बैठा है।

वो बच्चों के लिए हर
दुख से गुजरता भी है
वो है दशरथ जो राम
के लिए मरता भी है।

माँ एक शिक्षक है और
पिता खुद विद्यालय है
जहां ये दोनों खुश हैं
वो सबसे बड़ा देवालय है।।


दैनिक प्रतियोगिता हेतु 
मौलिक रचना


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26 Comments

Palak chopra

12-Sep-2022 09:04 PM

Achha likha hai 💐

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Anshumandwivedi426

13-Sep-2022 05:32 AM

सादर धन्यवाद आभार

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Ajay Tiwari

12-Sep-2022 05:08 PM

Nice

Reply

Anshumandwivedi426

13-Sep-2022 05:32 AM

Thanks

Reply

Punam verma

12-Sep-2022 08:47 AM

Nice

Reply

Anshumandwivedi426

12-Sep-2022 10:07 AM

Thanks

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